आज 26 मई को एम्सटर्डम ओलिम्पिक मे पहला ओलिम्पिक स्वर्ण पदक जीतकर भारत मां को गौरव से भर दिया मेजर ध्यानचंद की स्टिक से निकले फाइनल मैच के गोल भारतीय खेलों की गंगा का अवतरण है जो भागीरथी प्रयास अपनी मेहनत और तपस्या से ध्यानचंद ने भारत की धरती को दिए । ये दास्तान हिंदुस्तान के ऐसे हुनरमंद की है।जिसने सारी दुनिया में भारत का नाम रोशन किया ।इस महान शख्सियत व्यक्तित्व के हूनर के साथ ही हिंदुस्तान में हांकी का सफर शुरू होता है। मेजर ध्यानचंद एक ऐसा नाम जिस पर नाज़ करता है हिंदुस्तान ।जिसको अपने फन का जादूगर कहा गया हांकी का जादूगर मेजर ध्यानचंद हांकी और गेंद जिसके इशारों पर नाचती थी ।मेजर ध्यानचंद जो रात रात भर चांद की रोशनी में अकेले मैदान में नंगे पैर हांकी खेलते और जो देश के सम्मान और इज्ज़त के खातिर दुनिया के सबसे बड़े तानाशाह हिटलर से भी कह सकते थे की * मैं हिंदुस्तानी हूं चंद चांदी के सिक्को के खातिर अपना वतन हिंदुस्तान नही छोडूंगा *अपनी मेहनत से उस चांद की रोशनी में मैदान पर मेहनत करते और। उस रोशनी को अपने खेल और हूनर से चारो ओर बिखेर देते और इसलिए दुनिया ने ध्यानसिंह को ध्यानचंद की संज्ञा देकर आसमान के चांद के समतुल्य माना और ध्यानचंद भी ध्रुव तारें की भांति हमेशा हमेशा के लिए दुनिया में अमर हो गए ।हिंदुस्तान की हांकी हमेशा मेजर ध्यानचंद की कर्जदार रहेगी।
हेमंत चंद्र दुबे बबलू बैतूल