’’इस माह इंडोनेशिया में एशियाई खेलों का आयोजन होना है। फिर से भारतीय खेल और खिलाडी अपनी गतिविधियों की वजह से चर्चा में बने हुए हैं। खेल फेडरेशन, इंडियन ऑलंपिक एसोसिएशन (आईओए), कोर्ट और खिलाडी आपसे में ’गुत्थम-गुत्था’ हो रहे हैं। खेल मंत्रालय सब कुछ मूकदर्शक बनकर देख रहा है, क्योंकि वो फेडरेशन और आईओए को कुछ भी समझा नहीं पा रहा है। जो देश के खेलों के लिए अच्छी खबर नहीं है। बडे आयोजनों से पूर्व इस प्रकार की ’कंट्रोवर्सी’ खेलों से जुडे हुए लोगों को चिंतित करती रही है। आईओए और खेल मंत्रालय के निर्णय का सबको इंतजार है, क्योंकि इनके फैसले पर खिलाडियों को भविष्य दॉव पर लगा है। बडे खेल आयोजन और उनके साथ ’कन्ट्रोवर्सी’ अब ’चोली दामन’ का साथ बन गया है।’’
एक पखवाडे के बाद जकार्ता और पालेमबंग, इडोनेशिया में 18 वें एशियाई खेलों का आयोजन होना है। एशिया ही नहीं बल्कि विश्व के वृहद खेल आयोजन में से एक, इन खेलों में भारतीय खिलाडी अपनी दावेदारी प्रस्तुत करने के लिए कोर्ट की शरण में भी चले गए हैं। साथ ही साथ इंडियन ऑलंपिक एसोसिएशन द्वारा अपने नियमों के चलते फुटबाल की टीम को एशियाई खेलों में भाग लेने की अनुमति नहीं दी है। एशियाई खेलों की तैयारी के लिए फेडरेशनों ने अपने कई खिलाडियों को सरकारी खर्च पर विदेशों में ’ट्रेनिंग’ और ’कॉम्पीटीशन’ के लिए भेजा हुआ है। सबके अपने-अपने दावे हैं। इन बातों से खिलाडियों और खेल फेडरेशनों की जो बातेें सामने आ रही है, वो निश्चित ही चिंतनीय हैं।
रियो आलंपिक 2016 के दौरान भी फेडरेशन, कोर्ट, खिलाडियों के बीच जो कुछ भी हुआ वह ’सर्वविदित’ है। इस प्रकरण मंे बहुत ’थू-थू’ हुई थी। जिसमें देश को लगातार दो ऑलंपिक खेलों में व्यक्तिगत स्पर्धा में पदक दिलाने वाले पहलवान सुशील कुमार, नरसिंह यादव और फेडरेशन के मध्य एक लंबी लडाई चली थी। अपने नियमानुसार कुश्ती फेडरेशन ने ऑलंपिक के लिए क्वालीफाई नरसिंह यादव का पक्ष लिया था। जिसमें यह स्पष्ट था कि खिलाडी को हर अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में भाग लेेने के लिए एक ’निश्चित क्वालीफिकेशन’ को पार करना पडता है। वहीं सुशील कुमार ऑलंपिक की तैयारी के लिए खेल मंत्रालय के पैसों पर विदेशों में ट्रेनिंग करते रहे और उन्होंनें ऑलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली किसी प्रतिस्पर्धा में भाग नहीं लिया था। इस ’बहुचर्चित’ प्रकरण का पटाक्षेप हुआ, जब नरसिंह यादव ’रियो’ पहुॅचे। लेकिन उनकी किस्मत में शायद ’ऑलंपिक’ खेलना और ’ऑलंपियन’ कहलाना नहीं लिखा था। वे डोपिंग के दोषी पाए गए और बैरंग स्वदेश लौट आए। इस बहुचर्चित प्रकरण में भारतीय खेल जगत की विश्व खेल जगत में काफी छीछालेदार हुई थी।
वैसा ही एशियन गेम्स से पूर्व इन दिनों देश के खेल जगत में चल रहा है। पहले तो खेल मंत्रालय ने आईओए द्वारा भेजी गई एक भारी भरकम ’लिस्ट’ को छोटा किया। जिससे फेडरेशन, आईओए और खेल मंत्रालय के मध्य तनातनी रही। उसके बाद विश्व के सबसे लोकप्रिय खेल फुटबाल की टीम को आईओए ने एशियाई खेलों में भाग लेने जाने की अनुमति ही नहीं दी। अब ताजातरीन वाकया याचिंग खेल का है। जहॉ खिलाडी अपने चयन को लेकर कोर्ट की शरण मंे गए हैं। यहॉ फेडरेशन, खिलाडी, कोर्ट इस मसले में उलझ के रह गए हैं। वैसा ही मसला कराते के खिलाडियों का भी सामने आया है। जब खिलाडियों को अंतिम चयन किया जा चुका है किन्तु अब उन्हें अंतिम समय पर एशियाई खेलों मंे नहीं भेजा जायेगा।
एशियाई खेल में भारत की भागीदारी को अभी तक अंतिम रूप नहीं मिल सका है। हालांकि सब कुछ आयोजन समिति की गाईडलाईन के अनुरूप करना होता है। एक निर्धारित समय में अपने खिलाडियों और ऑफिशियल्स की सूची आयोजकों तक पहॅुचानी होती है। लेकिन यहॉ तो कुछ न कुछ ’कन्ट्रोवर्सी’ बनी हुई है। पिछले वर्ष देश में अंडर-17 फुटबाल विश्वकप का आयोजन हुआ। हालांकि भारतीय फुटबाल टीम वहॉ कुछ खास कमाल नहीं दिखा सकी। उसके बावजूद देश में फुटबाल की लोकप्रियता बढाने के लिए खेल मंत्रालय ने बहुत ही कुछ किया। भारतीय फुटबाल टीम भी कुछ वर्षों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अच्छा खेल रही थी। कई वर्षों के पश्चात् हमारी टीम ने शीर्ष 100 देशों में अपना स्थान बनाया। प्रोफेशनल इंडियन सुपर लीग, आई-लीग जैसी स्पर्धाओं के कारण खेल की लोकप्रियता में और इजाफा हुआ है। लेकिन आईओए के नियम के चलते भारतीय फुटबाल टीम ’इंडोनेशिया एशियन गेम्स’ में नहीं खेल पायेगी। आईओए ने स्पष्ट किया है कि जो टीमें एशिया में टॉप 8 में रहेंगी, वहीं एशियाई खेलों में हिस्सा लेगी। रैंकिग के अनुसार भारत एशिया में 14 वें नम्बर पर है।
ऐसे में फुटबाल प्रेमियों का कहना है कि यदि ऐसा ही था तो करोडों रूपये अंडर-17 विश्वकप फुटबाल के आयोजन पर क्यूॅ फूॅके गए। यदि टीम अंतरराष्ट्रीय स्तर नहीं खेलेगी तो उसकी रैंकिंग कैसे सुधरेगी। 2014 में भारतीय फुटबाल टीम फीफा वर्ल्ड में 170 वें पायदान पर थी। पिछले चार वर्षों में टीम ने आश्चर्यजनक रूप से अपनी ’वर्ल्ड रैंकिग’ में सुधार किया है। पिछले चार वर्षों में हर वर्ष ये प्रदर्शन सुधरा ही है। वर्तमान में भारत वर्ल्ड रैंकिंग में 97 वॉ स्थान रखता है। एशियाई रैंकिंग में वह 14 वें स्थान पर आ गया है। लेकिन आईओए के नियम के अन्तर्गत इस एशियाई खेलों में भारतीय फुटबाल प्रेमी अपनी टीम को नहीं देख सकेंगे।
याचिंग खेल के लिए याचिंग फेडरेशन ने अपने खिलाडियों का नियमानुसार चुनाव कर लिया। बाकायदा, उन्होंने यह कहते हुए ट्रायल कराए कि यह ट्रायल एशियन गेम्स के लिए है। किन्तु कुछ खिलाडियों ने अपने चयन को लेकर कोर्ट की शरण ली। कोर्ट ने पुनः ट्रायल कराने को कहा है। जबकि फेडरेशन के चयनित खिलाडियों ने भी अपनी आपत्ति फेडरेशन के सामने रखी कि जब पूर्व में चयन प्रक्रिया पूर्ण कर ली गई तो पुनः वे ट्रायल क्यों दें ? कोर्ट के दिशानिर्देशों पर फेडरेशन को कार्यवाही करनी है। फेडरेशन ने एशियन गेम्स कमेटी से उस जगह ट्रायल की अनुमति मांगी जहॉ एशियाई खेलों का आयोजन होना है तो आयोजकों ने साफ तौर पर मना कर दिया।
अब फेडरेशन की समझ में नहीं आ रहा कि वे क्या निर्णय लें ? एक ओर कोर्ट का आदेश और दूसरी ओर उनके सामने खिलाडियों के चयन निर्णय लेना। इसमें सब ’गुत्थम गुत्था’ हो गए हैं। अंततः आईओए ने कोर्ट में गए खिलाडियों का पक्ष लेते हुए उन्हें एशियन गेम्स में भेजने का फैसला किया। अब उन खिलाडियों के सामने असमंजस की स्थिति आ गई है, जिन्होंनेे फेडरेशन द्वारा आयोजित सलेक्शन ट्रायल में पहला स्थान हासिल कर एशियन गेम्स खेलने की पात्रता हासिल की थी। अंतिम समय में आईओए का यह निर्णय कितना किसके पक्ष मंे और किसके विपक्ष मंे गया है, यह तो फेडरेशन और खिलाडी ही जानते हैं।
वही कराते के दो खिलाडियों के सामने आईओए का निर्णय परेशानी खडी कर रहा है। पहले इन खिलाडियों के नामों की फेडरेशन के माध्यम से सूची आईओए के पास पहुॅच गई थी। लेकिन अंतिम समय पर आईओए ने इन खिलाडियों को एशियन गेम्स में न भेजने की बात कही है। अब फेडरेशन व खिलाडी सकते में हैं कि मात्र एक पखवाडे पहले ऐसा क्या हो गया कि सबकुछ ठीक ठाक चलते-चलते आखिरकार इंडोनेशिया जाने वाले उनके रास्ते पर ये कौन सा ’ब्रेकर’ आ गया। कराते के खिलाडी एशियन गेम्स के लिए ईरान में अपनी अंतिम तैयारियों में व्यस्त है। उनके लिए आईओए का यह फैसला, उनकी तैयारियों को प्रभावित कर रहा है। वे सभी सकते में हैं, कि आगे क्या होगा ? उनके दिमाग में अब ट्रेनिंग को छोडकर यह बात घर कर रही है कि वे यहॉ से अपने घर वापस जायेगें या एशियन गेम्स में खेलने का जो सपना वे लंबे समय से देख रहे हैं वह ’चकनाचूर’ हो जायेगा।
बहरहाल, जो भी एशियन गेम्स से पहले हो रहा है, वह अत्यंत ही ’दुखदायी’ है। खेल मंत्रालय ने एशियन गेम्स में अच्छे प्रदर्शन के लिए खिलाडियों को लंबे समय से अच्छी सुविधाएॅ मुहैया कराई हैं। अब जब ये खेल शुरू होने वाले हैं तो खिलाडियों की तैयारियों पर खर्च किया गया ’अथाह’ पैसा उनके आयोजन पर शिरकत न करने से बेकार चला जायेगा। समय तो है कि खिलाडियों को स्पर्धा से पूर्व और स्पर्धा के दौरान मानसिक रूप से ’मोटिवेट’ किया जाना चाहिये था। उन्हें ’हेल्दी एटमास्फियर’ दिलाया जाना चाहिये था, जिससे उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन इन खेलों में निकलकर सामने आता। यहॉ कहानी ही कुछ और हो गई है।
ऑलंपिक, एशियन गेम्स जैसे विश्व स्तरीय आयोजन चार वर्षों में एक बात आयोजित होते हैं। ऐसे में इन खेलों में भाग लेना खिलाडियों के लिए बहुत बडी बात होती है। वे ही जानते हैं कि इतने बडे आयोजनों में हिस्सेदारी ही क्या मायने रखती है। फेडरेशन यहॉ चाहता है कि उनके खिलाडी उनके खर्चे पर इन खेलों में भाग ले, लेकिन आईओए और खेल मंत्रालय उससे भी सहमत नहीं हैं। ऐसे में इतनी ’कन्ट्रोवर्सी’ कई खिलाडियों का खेल जीवन भी ’खत्म’ कर सकती है। साथ ही देश को एशियाई खेलों में कुछ पदकों से भी वंचित रहना पड सकता है। अंत में जो भी हो, लेकिन एक बात तो साफ है कि खेलों में घट रही ऐसी घटनाएॅ खिलाडियों के मनोबल को तोडने वाला सिद्ध होती हैं। तब लगता है कि खेलों को बढावा देने वाली बातें सिर्फ बातें ही हैं। वास्तविकता से उसका कोई लेना-देना नहीं। अब खेल फेडरेशन, आईओए और खेल मंत्रालय का संगम ही इन गुत्थी को सकारात्मक रूप से सुलझाए तो ही सब ठीक होगा। वर्ना एशियन गेम्स ’कन्ट्रोवर्सी’ की एक नई कहानी तो बन ही गई है।
दामोदर प्रसाद आर्य
(लेखक कमेन्ट्रेटर व खेल समीक्षक हैं)

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