भारतीय तीरंदाजी का एकलव्य द्रोणाचार्य अवार्ड का सबसे बड़ा हकदार!
राजेन्द्र सजवान – नई दिल्ली
चूंकि कोई भी भारतीय तीरंदाज अब तक ओलंम्पिक पदक नहीं जीत पाया है इसलिए लिम्बा राम का नाम श्रेष्ठता क्रम में शीर्ष पर है और शायद हमेशा रहेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि लिम्बा भारतीय तीरंदाजी की प्रेरणा और मार्ग दर्शक है। वह भारतीय तीरंदाजी में उसी प्रकार जाना पहचाना जाता है जैसे पांडव पुत्र अर्जुन महाभारत काल के सबसे बड़े धनुर्धर थे। लेकिन बेचारा लिम्बा उस एकलव्य सा बन कर रहा गया है, जिसका अंगूठा इस देश की व्यवस्था ने काट डाला है। संयोग से वह राजस्थान के उसी आदिवासी समाज से है जिसमें महान एकलव्य ने जन्म लिया था।
इस भोले भाले युवक की कहानी भी एकलव्य से मिलती जुलती है। गरीब परिवार में जन्म लेने और एक महां गरीब खेल को अपनाने की सजा वह आज तक भुगत रहा है। वह तीरंदाजी में तब अवतरित हुआ जब तीरंदाजी को खेल का दर्जा देने में भी सरकारी अधिकारियों के मरोड़े पड़ते थे। तीरंदाजों को हेय दृष्टि से देखा जाता था। लेकिन अपने अचूक निशानों से उसने जब एशियायी और विश्व रिकार्ड बनाए तो उसके खेल को भाव दिया जाने लगा। तीन ओलंम्पिक खेलने वाले लिम्बा मात्र एक अंक की दूरी से बार्सिलोना ओलंम्पिक 1992 में कांस्य पदक से चूक गए थे। अफसोस इस बात का है कि देश के श्रेष्ठ तीरंदाज को उसके सीधेपन और मासूमियत के चलते वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसका हकदार था।
पिछले कुछ सालों से वह गंभीर बीमारी का शिकार है। सरकार हर संभव मदद कर रही है लेकिन उसे अपनी छोटी छोटी जरूरतों के लिए सरकार और अन्य का मुंह ताकना पड़ रहा है। अर्जुन अवार्ड और पद्मश्री से सम्मानित लिम्बा न्यूरो डिजनरेटिव कंडीशन की गंभीर अवस्था से जूझ रहे हैं। स्वास्थ्य में लगातार गिरावट आने के चलते उसे लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती कराया गया। यह सिलसिला पिछले कई सालों से चल रहा है जिसका खर्च उसकी सामर्थ्य से कहीं ज्यादा है।
एक बेहतरीन खिलाड़ी होने के साथ साथ वह अच्छे कोच भी रहे हैं। भारतीय तीरंदाजों को खेल के गुर भी सिखाए। उनके शिष्य रहे अनेक तीरंदाजों ने देश का प्रतिनिधित्व किया और अंतर राष्ट्रीय पदक भी जीते हैं। लिम्बा का नाम इस बार लाइफ टाइम द्रोणाचार्य अवार्ड के लिए भेजा गया है। लिम्बा की पत्नी जेनी कहती हैं कि आज लिम्बा को द्रोणाचार्य अवार्ड की बड़ी जरूरत है। वह एक सम्माननित गुरु रह चुके हैं। उसे इलाज केलिए बड़ी रकम चाहिए। यदि सरकार उसे यह सम्मान दे तो उसकी बीमारी में खासी मदद हो सकती है। द्रोणाचार्य अवार्ड के साथ 25 लाख की सम्मान राशि भी दी जाती है, जिसकी लिम्बा को सबसे ज्यादा जरूरत है। यह राशि उसके इलाज और खुराक में काम आ सकती है।
लिम्बा के चाहने वाले सरकार और खेल मंत्रालय से पूछ रहे हैं कि उसका कुसूर क्या है? यही न कि वह गरीब है और सरकार से अपना हक मांगना नहीं जानता। ओलंम्पिक में चौथा स्थान या कोई स्थान पाए बिना ही कई खिलाड़ी खेल रत्न बन गए, अनेकों सिफारशी द्रोणाचार्य अवार्ड ले उड़े तो फिर लिम्बा को नजरअंदाज क्यों किया जा रहा है? असली हकदार और सबसे बड़ा जरूरतमंद वही है। उम्मीद है अवार्ड कमेटी इस बार उसके नाम पर अवश्य मुहर लगाएगी।

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