आज ओलम्पिक में एक स्वर्ण क्या आ गया ! हमारा कोटा पूरा हो गया ?

किसी के पास यह सोंचने का समय नहीं है कि क्यों हमें एक एक पदक के लिए जूझते नजर आते है। वही हमारे राज्यों से छोटे देश आ कर पदक जीत कर चले जाते है, कैसे ?
आज मै केवल भोपाल का एक उदाहरण दूंगा।
वर्ष 1987 में भेल भोपाल व भारतीय खेल प्राधिकरण के संयुक्त तत्वावधान में भेल खेल परिसर कि शुरुआत हुई। परिसर में बास्केटबाल, बैडमिंटन, टेबल टेनिस, टेनिस, एथलेटिक्स, क्रिकेट, फुटबाल, कबड्डी आदि खेलों के साईं प्रशिक्षक नियुक्त हुए नतीजे में इस परिसर ने राष्ट्रिय व अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ी दिए। यह दौर काफी लम्बे समय तक चला। परिसर ने केवल खिलाडी ही नहीं दिए वरन राष्ट्रिय स्तर की प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया गया।

परन्तु इसके बाद क्या हुआ :
साईं (भारतीय खेल प्राधिकरण) के केंद्रीय क्षेत्रीय केंद्र, भोपाल की स्थापना हुई (सभी जानते है की इसमें कितने स्थानीय खिलाड़ियों को लाभ मिल पाता है ) इसके बाद भेल, भोपाल व साईं (भारतीय खेल प्राधिकरण) का गठबंधन समाप्त हो गया और उसके बाद भोपाल से खेल प्रतिभाओं का निकलना बहुत ही काम हो गया। आज यह मैदान बदहाली के कगार पर है|
साईं (भारतीय खेल प्राधिकरण) के केंद्रीय क्षेत्रीय केंद्र के साथ यदि भेल का सेंटर भी चल रहा होता तो शायद आज भी भोपाल से अच्छे खिलाड़ी निकल रहे होते। यह तो हमारे खेल नीति के पालन का एक नमूना है।

क्रमशः…………………….